नहीं होंगे श्री जगन्नाथ के दर्शन, ना बजेंगे घंटे-घड़ियाल, ना होगी पूजा : ज्वर से पीड़ित हुए महाप्रभु, बंद हुए पट, 15 दिनों तक चलेगा उपचार
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भगवान श्री जगन्नाथ कलयुग के ऐसे देव हैं जिनकी दिनचर्या मनुष्यों की तरह है. भगवान जगन्नाथ से भक्तों का नाता अटूट है. ये भावनात्मक जुड़ाव है जहां श्री जगन्नाथ को भक्त भगवान की तरह नहीं बल्कि सखा या मित्र की तरह देखते हैं. तो कहीं माताएं उन्हें नन्हें कान्हा के रूप में दुलार करती हैं. कलयुग में भगवान जगन्नाथ की जीवंत लीला अनोखी है. जहां भगवान मनुष्यों की तरह जीवन जीते हैं. वे बीमार भी होते हैं, घूमने भी जाते हैं, जब देवी मां लक्ष्मी रूठती हैं तो उन्हें मनाते भी हैं. यानी इनकी सारी लीलाएं इंसानों की तरह है. यही कारण है कि महाप्रभु जगन्नाथ बीमार हो गए हैं. अब मंदिर में ना ही घंटे-घड़ियालों की आवाज सुनाई देगी, ना भगवान को 56 भोग लगेंगे और ना ही उनके दर्शन होंगे.
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दरअसल, पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में शनिवार को देव स्नान पूर्णिमा के अवसर पर स्नान नीति की परंपरा निभाई गई. जिसमें महाप्रभु जगन्नाथ, महाप्रभु बलभद्र, देवी सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन को 108 कलश के जल से स्नान कराया गया. जिसमें अत्याधित स्नान की वजह से भगवान जगन्नाथ ज्वर से पीड़ित हो गए हैं. उन्हें तेज बुखार हो गया है. इस वजह से अब आगामी 14 दिनों तक चतुर्थ विग्रहों (श्री जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा, सुदर्शन) के दर्शन भक्त नहीं कर पाएंगे.
नहीं होगा घंटे-घड़ियाल, शंख-मृदंग का शोर
आज से उनका औषधीय उपचार शुरु हो गया है. जिसके कारण 14 दिनों तक श्री मंदिर के पट बंद रहेंगे. इस दौरान भगवान की सेवा की जाएगी. उनका उपचार होगा. दिन में जो 5 बार भोग लगता है, उसकी जगह महाप्रभु को केवल औषधी दी जाएगी. इस दौरान उनकी पूजा भी नहीं होगी. ना मंदिर में घंटे घड़ियालों की आवाज सुनाई देगी. क्योंकि इन 14 दिनों में आराम करते हैं.
इन औषधियों का होगा उपयोग
भगवान को स्वस्थ करने के लिए औषधियुक्त काढ़ा का भोग लगाया जाएगा. इसमें स्वर्ण भस्म, केसर, इलायची, अदरक, आमी हल्दी, सौंठ, कालीमिर्च, जायफल, अजवाइन, करायल समेत अन्य औषधियों का उपयोग किया जाएगा. सभी औषधियों का चूर्ण बनाकर गंगाजल में उबालकर काढ़ा तैयार किया जाएगा. जो भगवान जगन्नाथ को दिया जाएगा.
नयनोत्सव के बाद नवयौवन रुप में दर्शन देंगे महाप्रभु
लगातार हुए उपचार के 15वें दिन भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होंगे. जिसके अगले दिन यानी 6 जुलाई को नयनोत्सव मनाया जाएगा. जिसमें श्री जगन्नाथ समेत चतुर्थ विग्रह अपने नवयौवन रूप में दर्शन देंगे. देश के सभी जगन्नाथ मंदिरों में ये उत्सव मनाया जाएगा. सोने या चांदी की सलाई से भगवान के नेत्र पर शुद्ध काजल लगाकर नेत्र खोलने की रस्म निभाई जाएगी. वहीं देशभर के जगन्नाथ मंदिरों के शिखर पर नया ध्वजा लगाई जाएगी. हालांकि पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में ये विधि हर शाम को की जाती है.
श्री मंदिर से बाहर निकलेंगे महाप्रभु
14 दिनों के बाद जब भगवान स्वस्थ होंगे तो वे मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों का हालचाल जानने निकलेंगे. इसी परंपरा को रथयात्रा या गुंडिचा यात्रा के नाम से जाना जाता है. भगवान अपने श्री मंदिर से निकलते हैं और रथारूढ़ होकर अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाते हैं. इस बीच वे भक्तों का हालचाल भी जानते हैं. तीनों भगवान मौसी के घर पर 7 दिनों तक रहते हैं. फिर वे वापस लौटते हैं. जिसे बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है.