Snan Purnima 2024 : स्नान वेदी पर विराजमान हुए महाप्रभु जगन्नाथ, 108 कलश के जल से कराया गया स्नान, कुछ ही देर में होगा गज श्रृंगार, देखिए पुरी से LIVE VIDEO
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Snan Purnima 2024. भगवान श्री जगन्नाथ कलयुग के ऐसे देव हैं जिनकी दिनचर्या मनुष्यों की तरह है. भगवान जगन्नाथ से भक्तों का नाता अटूट है. ये भावनात्मक जुड़ाव है जहां श्री जगन्नाथ को भक्त भगवान की तरह नहीं बल्कि सखा या मित्र की तरह देखते हैं. तो कहीं माताएं उन्हें नन्हें कान्हा के रूप में दुलार करती हैं. आज ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर देशभर के जगन्नाथ मंदिरों में अनोखी परंपरा निभाई जा रही है. जिसे स्नान पूर्णिमा (Snan Purnima 2024) या स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है.
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कलयुग में भगवान जगन्नाथ की जीवंत लीला अनोखी है. जहां भगवान मनुष्यों की तरह जीवन जीते हैं. वे बीमार भी होते हैं, घूमने भी जाते हैं, जब देवी मां लक्ष्मी रूठती हैं तो उन्हें मनाते भी हैं. यानी इनकी सारी लीलाएं इंसानों की तरह है. इसी कड़ी में आज महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन के श्री विग्रहों को स्नान कराया गया (Snan Purnima 2024). भगवान जगन्नाथ को सुगंधित जल से भरे 108 कलश के जल से नहलाया गया.
पुरी के श्री मंदिर में निभाई गई परंपरा
वैसे तो ये विधि पूरे देश में की जाती है. लेकिन पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में इस रीति का अलग ही रंग देखने को मिलता है. स्नान यात्रा के साक्षी बनने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. ये ऐसा अवसर होता है जब महाप्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और
बड़े भाइया बलभद्र समेत चारो विग्रह मंदिर के गर्भगृह की छत पर उत्तर पूर्व स्थित स्नान वेदी पर विराजमान होते हैं. जहां उन्हें महास्नान कराया जाता है. ये परंपरा आज देश के सभी जगन्नाथ मंदिरों में निभाई गई.
गज श्रृंगार
स्नान के बाद शाम को तीनों विग्रहों का श्रृंगार किया जाएगा. इसे गजभेश कहा जाता है. इसमें महाप्रभु और स्वामी बलभद्र को गज यानी भगवान गणेश के रूप में सजाया जाता है. जिसके दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं.
बीमार हो जाएंगे महाप्रभु
सुबह से शाम तक भक्तों के स्नान कराने के कारण भगवान की तबीयत बिगड़ जाएगी और रथयात्रा के परंपरागत लोकाचारों के अनुपालन में वह 14 दिनों के विश्राम पर जाएंगे. जिसके बाद से भक्तों के लिए भी 14 दिनों तक पट बंद हो जाएंगे. इस दौरान भगवान की सेवा की जाएगी. उनका उपचार होगा. दिन में जो 5 बार भोग लगता है, उसकी महाप्रभु को केवल औषधी दी जाएगी. इस दौरान उनकी पूजा भी नहीं होगी. ना मंदिर में घंटे घड़ियालों की आवाज सुनाई देगी. क्योंकि इन 14 दिनों में आराम करते हैं.
14 दिन बाद श्री मंदिर से बाहर निकलेंगे महाप्रभु
14 दिनों के बाद जब भगवान स्वस्थ होंगे तो वे मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों का हालचाल जानने निकलेंगे. इसी परंपरा को रथयात्रा या गुंडिचा यात्रा के नाम से जाना जाता है. भगवान अपने श्री मंदिर से निकलते हैं और रथारूढ़ होकर अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाते हैं. इस बीच वे भक्तों का हालचाल भी जानते हैं. तीनों भगवान मौसी के घर पर 7 दिनों तक रहते हैं. फिर वे वापस लौटते हैं. जिसे बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है.